मेरे भीतर की तन्हायियों में,
सिर्फ़
एक सन्नाटा बसता है,
सूने
दिल की गहरायियों में,
एक आहट को तरसता
है,
सिर्फ़
एक सन्नाटा बसता है ||
दरवाजे़
पर कोई दस्तक नहीं,
खिड़कियों
पर भी तो ताले
हैं,
धूल
में लिपटी हर चीज़ यहाँ,
छतों
से लटकते जाले हैं,
टूटे
शीशे की परछायियों में,
एक चहरे को तरसता
है!
सिर्फ़
एक सन्नाटा बसता है ||
कोई
मध्धम सी आवाज़ तो
हो,
कोई
धीमी सी पदचाप सुने,
यादों
का ही कोई तार
मिले,
जिसको
उधेड़े, फिर बुने,
इन अन्धकूप सी खायियों में,
एक सूर्य किरन को तरसता
है!
सिर्फ़
एक सन्नाटा बसता है ||
इस चकाचौंध की दुनिया में,
कानों
को चीरता शोर है,
जिसे
रोज़ देख तुम मुस्काते
हो,
मेरा
प्रतिबिंब, वो कोई और
है,
मैं
तो दूर पड़ा उस
कोने में,
जहाँ
धरती से आकाश मिलता
है!
और एक सन्नाटा बसता
है ||
कमर-कस, सीना-तान
एक दिन,
अगर
मुझसे मिलने तुम आओगे,
झोला
भर कंधों पर डाल,
सवाल
कई संग लाओगे,
पर मुझसे करने साक्षात्कार यहाँ,
मेरा
प्रतिबिंब तरसता है!
यहाँ सिर्फ़
सन्नाटा बसता है ||
No comments:
Post a Comment