यह मेरी नियति नहीं
मेरे सितारों की गति नहीं
ऐसा मेरा अरमान नहीं
मेरे गुरु का फ़रमान नहीं
फ़िर भी अब जोड़े हाथ
तन और मन को कर के साथ
तेरे द्वारे मैं बैठी हूँ।
ऐसा कुछ नहीं जो मिला नहीं
ऐसी कोई दुआ नहीं जिसका सिला नहीं
कुछ और पाने की चाहत नहीं
ऐसा दर्द नहीं जिससे राहत नहीं
फ़िर भी आज जोड़े हाथ
भरी हुई झोली के साथ
तेरे द्वारे मैं बैठी हूँ ।
वेद मन्त्रों का जाप नहिं
ढोल मंजीरे की थाप नहीं
पूजन अर्चन की विधि नहीं
दान चड़ावे की निधि नहीं
आज सिर्फ जोड़े हाथ
बस थोड़ी आस्था के साथ
तेरे द्वारे मैं बैठी हूँ ।
तूने कभी बुलाया नहीं
फ़िर भी एक पल को भुलाया नहीं
मुझे आने की स्पर्धा नहीं
साथ दुनियादारी का पर्दा नहीं
मैं फ़िर भी जोड़े हाथ
यहाँ रहने की ज़िद के साथ
तेरे द्वारे मैं बैठी हूँ ।
1 comment:
"मै तेरे द्वारे" अत्यंत भावपूर्ण ह्रदय स्पर्शी कविता है।समर्पण के साथ आत्मविश्वास और संतोष भी मुखर है।जीवन दर्शन को अभिव्यक्त किया है अतः अध्यात्म से भी जुड़ जाती है।इसलिए प्रभावमयता मे भी सक्षम है।
ह्रदय से निकले
भावपूर्ण ये शब्द
मन को छूते हैं और
अमिट छाप छोड़ जाते हैं।।
---सरिता बख्शी
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